कपिलमुनि मंदिर को तोड़ने का निर्देश

अजय गुप्ता/रमेश राय

कोलकाता। जनआस्था पर खतरा मंडरा रहा है। जी हां, ग्रीन ट्रिब्यूनल कोर्ट द्वारा एक निर्देश दिया गया है कि सागरद्वीप स्थित जन आस्था के केन्द्र कपिलमुनि मंदिर को तोड़ दिया जाए।उक्त निर्देश को लेकर हिंदुओं के मध्य गुस्से की लहर है। लोगों का कहना है कि ऐसा करना किसी के आस्था पर चोट करना होगा। तटीय इलाकों में पर्यावरण की रक्षा के लिये ग्रीन ट्रिब्यूनल कोर्ट ने गंगासागर स्थित कपिलमुनि मंदिर को तोड़ देने का निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने सागरद्वीप में ही स्थित भारत  सेवाश्रम संघ मिशन के आश्रम को भी तोड़ने का निर्देश दिया है। ग्रीन ट्रिब्यूनल कोर्ट नेकहा है कि समुन्द्र तट रेखा से 100 मीटर के मध्य स्थित तमाम होटल व लॉजों को बंद करना होगा। कोर्ट का कहना है कि सभी निर्माण तटवर्ती कानून की धज्जियां उड़ाते हुए किये गये हैं। यहां के तमाम होटल आश्रम व लॉज आदी पर्यावरण सुरक्षा को ठेंगा दिखा रहें हैं। उनके द्वारा काफी मात्रा में कचरा फैल रहा जो कि पर्यावरण के लिये खतरा है।बता दें कि कोर्ट द्वारा दक्षिण चौबीस परगना जिला प्रसाशन को को भी निर्धेस दिया है कि इसी माह में कोर्ट को जिला प्रशासन पर्यावरण सम्बंधी रिपोर्ट पेश करें।2014 में ग्रीन ग्रीन ट्रिब्यूनल कोर्ट की पूर्वांचल बेंच में उक्त मामला किया गया था। इसके बाद ही कोर्ट का निर्देश आया। मामले को लेकर राज्य सरकार भी चिंतित है। प्रर्यावरणविद सुभाष दत्ता ने कुछ दिन पहले उक्त इलाके का दौरा किया था और ग्रीन ट्रिब्यूनल को एक रिपोर्ट पेश किया था। बता दें कि कपिलमुनि मंदिर 437 ईशा पूर्व बना था। 2 बार मंदिर सागर की लहरों में खो गया था। वर्तमान मंदिर 1973 में बनाया गया है जिसका सौंदर्यीकरण चल रहा है।

sagar kapilmuniयह स्थान हिन्दुओं के एक विशेष पवित्र स्थल के रूप में जाना जाता है। मान्यता है  कि, गंगासागर की पवित्र तीर्थयात्रा सैकड़ों तीर्थ यात्राओं के समान है। शायद इसलिये ही कहा जाता है कि “हर तीर्थ बार–बार, गंगासागर एक बार।” लेकिन अब सागर तीर्ययात्रा काफी सुगम हो गई जिससे कहा जा सकता है कि, गंगा सागर तीर्थ यात्रा अब बार-बार। मान्यता है कि गंगासागर का पुण्य स्नान अगर विशेष रूप से मकर संक्राति के दिन किया जाए तो उसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है और पुण्यार्थी को इस स्नान का विशेष पुण्य मिलता है।तमाम ग्रंथों सह पुराणों में मां गंगा के धरती पर अवतरण की जानकारी मिलती है। भगवान श्री राम के कुल के राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ कर घोड़ा छोड़ा। अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े की सुरक्षा का जिम्मा उन्होंने अपने 60 हज़ार पुत्रों को दिया। देवराज इंद्र ने वह घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। घोड़े को खोजते हुए जब राजकुमार वहाँ पर पहुँचे तो कपिल मुनि को भला–बुरा कहने लगे और घोड़ा चोर समझा। मुनि को राजपुत्रों के इस क्रिया कलाप पर क्रोध आ गया और सभी 60 हज़ार सगर पुत्र मुनि की क्रोधाग्नि में जलकर भस्म हो गये। ऐसे में सगर के पुत्र अंशुमान ने मुनि से क्षमा–याचना की तथा राजकुमारों की मुक्ति का उपाय पूछा। मुनि ने कहा-स्वर्ग से मां गंगा को धरती पर लाना होगा और गंगा की जलधारा के स्पर्श भष्मिभूत60 हज़ार सगर पुत्रो का उद्धार होगा। राजपुत्र अंशुमान को तप में सफलता नही मिली। फिर उन्हीं के कुल के भगीरथ ने तप करके स्वर्ग से गंगा को पृथ्वी पर उतारा। भगीरथ जैसे-जैसे जिस रास्ते से होकर गुजरे मां गंगा की अविरल धारा भी गुजरी। चुकि राजपुत्रों को ऋषि के श्राप से मुक्त करना था अतएवं भगीरथ के साथ गंगा सागरद्वीप में आई। कपिल आश्रम श्रेत्र में आयीं गंगा का स्पर्श जैसे ही  सागर के साठ हजार मृत मृत पुत्रों की राख से हुआ सभी राजकुमार मोक्ष को प्राप्त हुए। कहते हैं कि राजपुत्रों को मकर संक्राति के दिन ही मुक्ति मिली थी।

भागवत पुराण में वर्णन है कि कपिलमुनि भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। कपिलमुनि की माता का नाम देवहूति व पिता का नाम कर्दम ऋषि था। देवहूति को ब्रह्म जी की पुत्री बताया जाता है।कपिलमुनि ने अपनी मां देवहूति को बाल्यावस्था में सांख्य-शास्त्र का ज्ञान दिया था। उनकी मां मनु व शतरूपा की पुत्री भी कहा जाता है। शास्त्र ग्रंथ बताते हैं कि जब प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो उन्होंने अपने शरीर के आधे हिस्से से नारी का निर्माण किया। इन्हें मनु तथा शतरूपा कहा गया। देवहूति के पति थे ऋषि कर्दम।  कपिल मुनि अपने माता-पिता की दसवीं संतान थे। उनसे पहले उनकी नौ बहनें थीं।  कपिल मुनि महाराज ने जब सांख्य शास्त्र की रचना की थी तब बाल्यावस्था में ही कपिल मुनि महाराज ने अपनी माता को सृष्टि व प्रकृति के चौबीस तत्वों का ज्ञान प्रदान किया था।कहते हैं कि सांख्य दर्शन के माध्यम से जो तत्व ज्ञान मुनि महाराज ने अपनी माता देवहूति के सामने रखा था वही श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश के रूप में सुनाया था।

 

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