कोलकाता।  पश्चिम बंगाल के मशहूर प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय ने जनसंहारों के इतिहास पर एक पाठ्यक्रम शुरू किया है, जिसमें जर्मनी में यहूदियों की सामूहिक हत्या पर अध्ययन भी शामिल है. विश्वविद्यालय ने इस पाठ्यक्रम की शुरुआत 20वीं सदी से अब तक के इतिहास के आधार पर जनसंहारों के कारणों की समझ बनाते हुए इससे बच सकने के उपायों पर विचार करने के उद्देश्य से की है.पाठ्यक्रम के कोऑर्डिनेटर नवरस जाट आफरीदी के बताया कि चीन और इजरायल के बाद पूरे एशिया में 200 वर्ष पुराना प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय एकमात्र ऐसा संस्थान है, जहां यहूदी जनसंहार (होलोकॉस्ट) पर कोई पाठ्यक्रम है.

प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय में इतिहास के सहायक प्राध्यापक के तौर पर काम करने वाले अफरीदी भारतीय-यहूदी अध्ययन के विद्वान हैं. इस पाठ्यक्रम का शीर्षक ‘ए हिस्ट्री ऑफ मास वॉयलेंस, 20 सेंचुरी टू द प्रेजेंट’ रखा गया है और इतिहास से एम. ए. करने वाले विद्यार्थियों को तृतीय सत्र के दौरान पढ़ाई जाएगी.अफरीदी ने बताया कि जहां-जहां यहूदी अध्ययन केंद्र हैं वहां होलोकॉस्ट पर भी पाठ्यक्रम हैं. उन्होंने बताया कि चीन और इजराइल के अलावा एशिया के किसी देश के विश्वविद्यालय होलोकास्ट पर पाठ्यक्रम नहीं चलाते. यह पाठ्यक्रम इस बात की पड़ताल करता है कि हिंसक माहौल में समाज के अलग-अलग वर्गों की प्रतिक्रिया कैसी होती हैं और किस प्रकार उनके बीच में से ही लोग शोषक, शोषित, बचाने वाले तथा तमाशबीन की भूमिका अदा करते हैं.यहूदियों पर एक किताब लिख चुके अफरीदी बताते हैं कि हालांकि पाठ्यक्रम का मुख्य केंद्र होलोकॉस्ट है, लेकिन दुनिया में हुए अन्य जनसंहारों को भी पाठ्यक्रम में पर्याप्त जगह दी गई है. इस पाठ्यक्रम में आर्मीनिया, बुरुं डी तथा पोलपोट जनसंहार के अलावा इंडोनेशिया में 1965-1966 में हुए जनसंहार तथा बोस्निया-हर्जेगोविना के युद्ध को भी शामिल किया गया है. संयोगवश भारत में हुए जनसंहार को इस पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है.अफरीदी ने कहा, “भारत में हुई सामूहिक हिंसा की घटनाओं पर चर्चा, भेदभाव और मनमुटावों को जन्म दे सकती थी.अफरीदी ने विश्वविद्यालय के प्रति आभार जताते हुए कहा कि भारत में जनसंहार विषय के कई विद्वान हैं, किंतु इस पाठ्यक्रम के पहले तक जनसंहार अध्ययन पर आधारित कोई भी पाठ्यक्रम भारत में नहीं पढ़ाया जाता था.

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