कोलकाता। इन दिनों राज्य में तमाम योजनाओं के नाम बदलने के अभियान जोरो पर है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के बहुत से प्रॉजेक्ट्स को बांग्ला नाम दे दिए हैं। इसके पीछे उनका तर्क है कि अगर पश्चिम बंगाल केंद्र के प्रॉजेक्ट्स के लिए 40 पर्सेंट से अधिक योगदान दे रहा है, तो राज्य के पास प्रॉजेक्ट्स का नाम बांग्ला में रखने का पूरा अधिकार है। जल्द ही पश्चिम बंगाल सरकार प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से ‘प्रधानमंत्री’ को हटा देगी। राज्य सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन का नाम बदलकर निर्मल बांग्ला और नैशनल रूरल लाइवलीहुड्स मिशन या दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना का नाम आनंदाधारा कर दिया है।प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना (ग्रामीण आवास) को अब पश्चिम बंगाल में बांग्ला गृहा प्रकल्प और दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना को ‘सबर घरे आलो’ कहा जाएगा। ममता हर सार्वजनिक मंच का इस्तेमाल अपने राज्य के इरादे को जाहिर करने के लिए कर रही हैं। उनका कहना है, ‘केंद्र सरकार ने बहुत सी केंद्रीय योजनाओं में फंड की अपनी हिस्सेदारी घटा दी है। राज्य प्रॉजेक्ट की कम से कम आधी लागत के लिए भुगतान कर रहा है। इस वजह से प्रधानमंत्री या केंद्र में संबंधित राजनीतिक दलों के नेताओं या विचारकों के नाम पर योजनाएं क्यों चलाई जानी चाहिए।’ हालांकि, ब्यूरोक्रेट्स की नाम बदलने के मुद्दे पर कुछ अलग राय है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘प्रॉजेक्ट्स के केंद्रीय नामों से स्थानीय लोग परिचित नहीं होते। इस वजह से योजना और स्थानीय लोगों के बीच संबंध बनाने के लिए हम अक्सर नाम को स्थानीय भाषा में बदल देते हैं। यह बहुत से राज्यों में होता है।’ हालांकि, ममता मंत्रिमंडल के मंत्री इस मुद्दे पर दीदी के सुर में सुर मिला रहे हैं। पश्चिम बंगाल के ऊर्जा मंत्री सोवनदेब चटर्जी ने कहा, ‘पहले केंद्रीय योजनाओं के लिए केंद्र-राज्य की हिस्सेदारी 90:10 की थी। अब केंद्र ने राज्य की हिस्सेदारी चार गुना बढ़ा दी है। इस वजह से बहुत सी योजनाओं में हिस्सेदारी 60:40 की हो गई है। हमने योजनाओं की लागत में बढ़ोतरी देखी है, तो इस अतिरिक्त खर्च को कौन उठाता है? यह राज्य सरकार उठाती है। इस वजह से योजनाओं का नाम प्रधानमंत्री या उनके नेताओं पर क्यों होना चाहिए? हमने सरकार बदलने के साथ केंद्रीय योजनाओं के नाम बदलते देखे हैं। बहुत सी योजनाओं को पार्टी के विचारकों के नाम पर दोबारा लॉन्च किया गया था। तो नाम बदलने की शुरुआत केंद्र की पार्टी ने की है।’ ममता बनर्जी लंबे समय से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कथित तौर पर ‘संघीय ढांचे के उल्लंघन’ के लिए शिकायत करती रही हैं। इसके अलावा उन्होंने केंद्र के डीमॉनेटाइजेशन के कदम का भी जमकर विरोध किया

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