पं. विजय उपाध्याय ‘शास्त्री’
सनातन संस्कृति ही हमारी पहंचान है और हमारे त्यौहार इस बात के घोतक है कि हमारी जड़ें आनादी काल से गहरी जमी हुई है। आप को बता दें कि इस साल 2017 में मकर सक्रांति सर्वार्थसिद्धि योग में गज यानी हाथी पर सुख-समृद्धि का शुभ संदेश लेकर आएगी। सूर्य के दक्षिण से उत्तरायण होने का पर्व 14 जनवरी को रहेगा। 28 साल बाद सक्रांति पर सर्वार्थ सिद्ध, अमृत सिद्धि के साथ चंद्रमा कर्क राशि में जबकि अश्लेषा नक्षत्र और प्रीति और मानस योग का संयोग बनेगा।जनमानस के लिए समृद्धिकारक है। दृष्टि पश्चिम दिशा में है। संक्रांति लाल वस्त्र धारण की हुई और उनका शस्त्र धनुष है। हाथ में लोहे का पात्र है और वे दूध का सेवन कर रही हैं। सूर्य देव मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। ऊं हृीं हृीं सूर्याय सहस्त्रकिरणाय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा मंत्र जाप करने से सभी मनोकामनाऐं पूर्ण होती हैं। भगवान श्री सूर्य देव यश, कीर्ति, संपन्नता, समृद्धि का वरदान देते हैं। वे सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। मकर संक्रांति के दिन पूर्वजों को तर्पण और तीर्थ स्नान का अपना विशेष महत्व है। इससे देव और पितृ सभी संतुष्ट रहते हैं। सूर्य
पूजा से और दान से सूर्य देव की रश्मियों का शुभ प्रभाव मिलता है और अशुभ प्रभाव नष्ट होता है। इस दिन स्नान करते समय स्नान के जल में तिल, आंवला, गंगा जल डालकर स्नान करने से शुभ फल प्राप्त होता है। सूर्य को जगत की आत्मा माना गया है। इसी कारण सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश महत्वपूर्ण माना जाता है। इस एक राशि से दूसरी राशि में किसी ग्रह का प्रवेश संक्रांति कहा जाता है।
सूर्य का धनु राशि से मकर राशि म प्रवेश का नाम ही मकर संक्रांति है। धनु राशि बृहस्पति की राशि है। इसमें सूर्य के रहने पर मलमास होता है। इस राशि से मकर राशि में प्रवेश करते ही मलमास समाप्त होता है और शुभ मांगलिक कार्य हम प्रारंभ करते हैं। मकर संक्रांति का दूसरा नाम उत्तरायण भी है क्योंकि इसी दिन से सूर्य उत्तर की तरफ चलना प्रारंभ करते हैं। उत्तरायण के इन छः महीनों में सूर्य के मकर से मिथुन राशि में भ्रमण करने पर दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। इस दिन विशेषतः तिल और गुड़ का दान किया जाता है। इसके अलावा खिचड़ी, तेल से बने भोज्य पदार्थ भी किसी गरीब ब्राह्मण को खिलाना चाहिए। छाता, कंबल, जूता, चप्पल, वस्त्र आदि का दान भी किसी असहाय या जरूरत मंद व्यक्ति को करना चाहिए। राजा सागर के 60,000 पुत्रों को कपिल मुनि ने क्रोधित होकर भस्म कर दिया था। इसके पश्चात् इन्हें मुक्ति दिलाने के लिए गंगा अवतरण का प्रयास प्रारंभ हुआ। इसी क्रम में राजा भागीरथ ने अपनी तपस्या से गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया। स्वर्ग से उतरने में गंगा का वेग अति तीव्र था इसलिए शिवजी ने इन्हें अपनी जटाओं में धारण किया। फिर शिव ने अपनी जटा में से एक धारा को मुक्त किया। अब भागीरथ उनके आगे-आगे और गंगा उनके पीछे -पीछे चलने लगी। इस प्रकार गंगा गंगोत्री से प्रारंभ होकर हरिद्वार, प्रयाग होते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंचीं, यहां आकर सागर पुत्रों को शापमुक्त किया।
