भाईचारे पर भारी पड़ रही है सियासत  

जगदीश यादव

हावड़ा। किसी ने ठीक ही कहा है। लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,  तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में। बिते कई दिनों से पं. बंगाल के हावड़ा स्थित  धूलागढ़ नफरत की आग में जल रहा है और यहां के आम लोग दहशत में हैं। उक्त ऐसे लोंग हैं जिन्हें सियासत से कोई सरोकार नहीं है। दहशत में जी रहें लोग बस दो जून की रोटी में ही अपना समय खपा देंने वालें हैं क्योंकि इनके पास नफरत के लिये समय ही नहीं है। इलाके में पुलिस व रैफ की तैनाती और बंद दुकान- पाट को देखकर कोई अंजान भी कल्पना कर सकता है कि यहां जरुर कोई बड़ी घटना घटी है। रात का घुप्प अंधेरा नहीं बल्कि सुबह 10 बजे दिन के उजाले में आम आदमी यहां कम ही दिखें । खिड़की या दरवाजे की आड़ से झांकती कुछ महिलाएं जरुर दिखीं.और कई घरों और दुकानों को जलाने के प्रमाण साफ नजर आये।  कई जगहों में लूटपाट के शिकार घरों के सामान व कांच के टुकड़े रास्ते में बिखरे हुए थे। इलाके के जिन जगहों पर बम से हमला किया गया था उक्त जगह को साफ पहचाना जा सकता है।  वैसे स्थानीय कुछ लोगों की मदद से यहां कई लोगों से बात हुई क्योंकि कुछ परिवार गांव लौटने लगे हैं। गांव में सुरक्षा के सख़्त इंतजाम किए गए हैं और पुलिस ने अपना डेरा डाल रखा है।

कुछ लोगों से बात की गई लेकिन गांव के लोग इस बारे में ज़्यादा खुलकर बात नहीं कर रहे हैं। जो प्रभावित परिवार हैं उन लोगों में कईयों का आरोप है कि  हमारे लिये राहत की बात कम हो रही है लेकिन सियासत ज्यादा की जा रही है। यहां हर कोई दंगे की बात को स्वीकार तो करता है लेकिन जिन दो वर्गों के बीच दंगें की घटना घटी है उनमे से कोई भी वर्ग यह नहीं कह रह है दंगे में उनके वर्ग का हाथ है। हर कोई यहां अपने वर्ग को शोषित और पीड़ित बता रहा है । लेकिन दोंंनों वर्गों में समानता एक बात को लेकर थी कि दोनों वर्गों ने आरोप लगाया कि उन्हें सामने रख कर राजनीति की जा रही है। वहीं पुलिस का कहना है कि स्थिति नियंत्रण में है। वैसे स्थानीय लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि उनके घर जला दिए गए हैं और वह लोग वहां कैसे रह पाएंगे। दिन के उजाले में ही हमे मौत का खौंफ सता रहा है तो रात का वक़्त वहां नहीं गुज़ार सकते क्योंकि वे काफ़ी ख़ौंफ़ज़दा हैं.

 

 

 

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