राज्य के मछली बाजार हो रहें हैं धारासायी

कोलकाता । कहते हैं कि राज्य के मूल निवासियों के खाने में मछली नहीं हो तो उनकी भूख ही नहीं मिटती है। यहां के लोगों का खाना बिना मछली के नहीं होता है। लेकिन नोटबंदी के असर से राज्य के लोगों को मछलियों से समझौता करना पड़ रहा है। पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक पसंद की जाने वाली हिलसा मछली के दाम मोदी सरकार के नोटबंदी के बाद गिरकर 6 साल के लेवल पर पहुंच गए हैं। कोलकाता में डायमंड हार्बर पर मौजूद नागेन्द्र फिश मार्केट में पिछले एक सप्ताह से करेंसी की कमी के चलते ट्रेड 70 पर्सेंट कम हो गया है। इससे मछली के दाम में काफी गिरावट आई है। यह पश्चिम बंगाल में सबसे बड़ी फिश मार्केट है। सुंदरबन के नजदीक नामखाना फिशिंग हार्बर पर मछली की आवक घट गई है क्योंकि ट्रॉलर मालिकों के पास मछुआरों से मछली खरीदने के लिए कैश नहीं है। वर्ष के इस समय उपलब्ध होने वाली मिड-साइज हिलसा की कीमत आमतौर पर डायमंड हार्बर के होलसेल मार्केट में लगभग 300 रुपये प्रति किलोग्राम की होती है, लेकिन अब यह 60 पर्सेंट गिरकर 125 रुपये प्रति किलोग्राम रह गई है। हिलसा के दाम में बड़ी गिरावट के बाद कोलकाता में इसकी सप्लाई कम हो गई है।

फ्राई करके पकाने के लिए पसंद की जाने वाली पॉम्फ्रेट की कीमत में 50 पर्सेंट तक की कमी हुई है, क्योंकि इसके खरीदार बहुत कम हैं। होलसेल मार्केट में 20 रुपये प्रति किलोग्राम पर बिकने वाली बॉम्बे डक की कीमत अब 5-7 रुपये प्रति किलोग्राम रह गई है। फिश मार्केट में नियमित खरीदारी करने वाले मिलन चक्रवर्ती ने बताया, ‘गरियाहाट के रिटेल मार्केट में हिलसा 400 रुपये किलो के दाम पर मिल रही है। ऐसा बताया जा रहा है कि सप्लाई बंद होने से एक या दो दिन में मार्केट से मछली गायब हो जाएगी।’

फिश की सप्लाई कम होने से आइस इंडस्ट्री पर भी बुरा असर पड़ा है। डायमंड हार्बर एरिया में 14 आइस मिल हैं, जो फिश ट्रेडर्स को आइस ब्लॉक की सप्लाई करती हैं। सदर्न सेंट्रल फिशरीज कोऑपरेटिव सोसाइटी के एंप्लॉयी उत्पल प्रधान ने बताया कि पिछले एक सप्ताह में आइस ब्लॉक की कीमत 25 पर्सेंट गिरकर 120 रुपये रह गई है। पश्चिम बंगाल के सुंदरबन, नामखाना और डायमंड हार्बर एरिया में फिशिंग रोजगार का मुख्य जरिया है। इन एरिया की इकनॉमी इसी से चलती है। सिलिगुड़ी, बरहामपुर, कृष्णानगर, बासिरहाट, सियालदाह और हावड़ा के होलसेलर्स नागेन्द्र फिश मार्केट से मछली खरीदकर लोकल मार्केट्स में बेचते हैं।

फिश से जुड़ा कारोबार इस तरह काम करता है: गांवों में रहने वाले मछुआरे मछली पकड़कर ट्रॉलर मालिकों को बेचते हैं। ट्रॉलर मालिक इसके बाद नामखाना फिश हार्बर आकर उस मछली को कमीशन एजेंट्स को बेचते हैं। इन एजेंट्स की नागेन्द्र फिश मार्केट में दुकानें हैं और वहां से होलसेलर्स मछली खरीदते हैं। साउथ सुंदरबन फिशरमेन एंड फिशरीज यूनियन के प्रेसिडेंट, मुजम्मल खान ने बताया, ‘रोजाना नामखाना से मछली के 100-150 ट्रक डायमंड हार्बर फिश मार्केट आते हैं। फिश मार्केट में 72 कमीशन एजेंट हैं और प्रत्येक एजेंट एवरेज 35-50 लाख रुपये का रोजाना बिजनेस करता है। ट्रॉलर बिजनेस में 42,000 से अधिक लोग जुड़े हैं। नकदी की कमी से एरिया में फिश इकनॉमी पर बुरा असर पड़ा है। इसके बावजूद हम देश के लिए अच्छा होने की वजह से नोटबंदी के कदम का समर्थन कर रहे हैं।’

 

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