कोलकाता। सिंगुर गरीब, दलित, पिछड़ों और घुमंतू जनजातियों की आवाज रही महाश्वेता देवी की समाधी भले ही पश्चिम बंगाल में नहीं बने लेकिन उनकी समाधी गुजरात में बनेगी। उन्हेंन ‘डिनोटिफायड एंड नोमेडिक ट्राइव्स राइट्स एक्शन ग्रुप’ नामक संस्था का गठन किया और इनके अधिकारों के लिए खुद भी लगातार संघर्ष किया। बताया जाता है कि महाश्वेता देवी को पहली बार वड़ोदरा में भाषा के वेरियर एल्विन मेमोरियल लेक्चर में सुनने का मौका मिला। यह भाषा के साथ महाश्वेता देवी का पहला परिचय था। भाषा से जुड़े प्रोफेसर गणेश देवी के अनुसार, उसके बाद भाषा संस्थान महाश्वेता देवी का मानों दूसरा घर ही हो गया था। जब तक उनके स्वास्थ्य ने साथ दिया वे नियमित वड़ोदरा और तेजगढ़ स्थिति आदिवासी अकादेमी आती रहीं। महाश्वेता आदिवासी अकादमी के पूरे कॉन्‍सेप्‍ट को बेहद पसंद करती थीं।भाषा संस्थान द्वारा जारी एक पत्र के अनुसार प्रोफेसर गणेश देवी ने महाश्वेता देवी की मृत्यु के बाद उनके परिवार से संपर्क किया। उनके परिवार के लोग महाश्वेता की अस्थियां तेजगढ़ स्थित आदिवासी अकादमी में रखने के लिए देने को तैयार हो गए हैं। प्रोफसेर देवी स्वयं महाश्वेता देवी की अस्थियों को लाने के लिए कोलकाता जाने वाले हैं। 21 अगस्त को अस्थि कलश वड़ोदरा स्थित भाषा कार्यालय में सुबह साढ़े नौ बजे से 11 बजे तक उनके लिए रखा जाएगा, जो दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि देना चाहते हैं। 21 तारीख को ही ही अस्थि कलश आदिवासी अकादेमी, तेजगढ़ ले जाया जाएगा, जहां 03 बजे से लेकर 04.30 बजे तक प्रार्थना सभा होगी। उसके बाद अस्थि कलश को प्रस्तावित समाधी स्थल तक ले जाया जाएगा। आदिवासी अकादमी में आने वाले विद्यार्थियों और शिक्षकों को जरूर महाश्वेता का अस्थि कलश उनके जैसा बनने के लिए प्रेरित करेगा। खैर जो भी हो लेकिन हजार चौरासी की मां के लिये उठाया गया कदम तारीफ के लायक है।

 

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