तृणमूल की आंधी का असर अबतक

कोलकाता। तृणमूल की आंधी से पस्त हुई माकपा व कांग्रेस एक नाजूक दौर से गुजर रही है। तृणमूल के बढ़ते कदम के कारण दोनों दलों के लोगों के मनोबल में गिरावट आ रही है और दोनों पार्टियां अंदरूनी कलह और फूट से जूझ रहीं है। ऐसे में कांग्रेस और माकपा के लिए अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट रखना मुश्किल होता जा रहा है।तृणमूल कांग्रेस विधानसभा चुनाव में मिली भारी जीत के बाद राज्य में विपक्ष के नियंत्रण वाले विभिन्न निगमों और पंचायतों में भी काबिज होने में कामयाब गई है हो। पिछले कुछ माह से कांग्रेस या वामदलों के पार्षदों तथा पंचायत सदस्यों का तृणमूल में जाने का सिलसिला बरकरार है। बीते महीने कांग्रेस और वामदल, दोनों के एक-एक विधायक भी तृणमूल कांग्रेस में जा चुके हैं जिससे 294 सदस्यीय विधानसभा में विपक्ष का संख्याबल 76 से गिरकर 74 रह गया है। तृणमूल कांग्रेस के पास फिलहाल 211 विधायक हैं। पार्टी का दावा है कि उसने किसी को भी पार्टी में शामिल होने के लिए बुलावा नहीं भेजा है और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की विकास प्रक्रिया का हिस्सा बनने के इच्छुक लोग अपनी मर्जी से पार्टी में आ रहे हैं। दूसरी ओर विपक्ष का आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस विपक्षी पार्टियों में सेंध लगाने और इसके विधायकों को अपनी पार्टी में बुलाने के लिए धन और बल का इस्तेमाल कर रही है। बहरहाल माकपा औ र कांग्रेस के लिये तृणमूल के सामने खड़े हो पाना भी अपने आप में एक चुनौती से कम नहीं है। विशेषकर राज्य में हत्थे से उखड़ चुकी माकपा के दिन कब बहुरेगें यह कहना मुश्किल है।

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