कोलकाता। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मौत के रहस्य पर भले ही परदा पड़ा हो लेकिन  कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर की मौत से जुड़े कुछ गहराए रहस्य उजागर हो सकते है। नोबेल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर की मृत्यु के बारे में कुछ ही लोगों को पता होगा। रविवार को टैगोर के पैतृक घर के संरक्षक रविंद्र भारती यूनिवर्सिटी ने फैसला किया गया कि उन घटनाओं का पुनर्निमाण किया जाएगा, जिन कारणों से साल 1941 में टैगोर की मृत्यु हुई।दरअसल, देश के कई बड़े डॉक्टरों ने टैगोर का इलाज करने वाले मेडिकल एक्सपर्टस के मेडिकल पेपर और उनके निरीक्षण का अवलोकन किया है। टैगोर के म्यूजियम जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी के पास टैगोर के अंतिम दिनों की कोई रिकॉर्डिंग नहीं है। वो कमरा जहां टैगोर ने अंतिम सांसें ली उसे व्यवस्थित तो कर रखा है।लेकिन, यहां आने वाले आगंतुकों को टैगोर की बीमारियों की वजह के बारे में नहीं बताया जाता है। एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर की माने तो रविंद्र भारती यूनिवर्सिटी के कुलपति सब्यासाची बसु रॉय ने कहा, समय अब बदल चुका है और हमनें अंत में मिथक को दूर करने के बारे में सोचा।

इस बारे में किसी को भी नहीं पता कि टैगोर की मृत्यु कैसे हुई। ज्यादातर लोगों को नहीं पता कि वह शायद प्रोस्टेट कैंसर के पीडि़त थे। टैगोर नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई व्यक्ति थे। यह सम्मान उन्हें उनकी काव्य रचना गीतांजलि के लिए 1913 में मिला। भारतीय राष्ट्रगान जन गण मन और बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रचनाकार भी रबींद्र नाथ टैगोर ही थे।15 सितंबर 1940 को टैगोर ने एकाएक पेट में तेज दर्द की शिकायत की। उनके मूत्राशय में संक्रमण पाया गया। इसके बाद उनका पेशाब करना लगभग पूरी तरह से ही बंद हो गया। उन्हें उनके पैतृक निवास ठाकुरबाड़ी ले जाया गया। वहां थोड़े दिन रखने के बाद उन्हें शांतिनिकेतन ले जाया गया।हालांकि टैगोर ने आयुर्वेदिक इलाज जारी रखे जाने का आग्रह किया था, लेकिन डॉक्टरों ने साथ-साथ अंग्रेजी पद्धति से भी इलाज करने की ठानी। डॉक्टर ऑपरेशन की जिद कर रहे थे, लेकिन टैगोर ने इससे इनकार कर दिया।फिर जब उनकी हालत और बिगड़ गई, तब डॉक्टरों को उनमें यूरीमिया और कुछ अन्य बीमारियों का पता लगा। फिर जल्द से जल्द ऑपरेशन किए जाने का फैसला किया गया। ठाकुरबाड़ी में ही एक ऑपरेशन थियेटर बनाकर उनकी सर्जरी हुई। डॉक्टर उनके बढ़े हुए प्रोस्टेट को तो नहीं निकाल पाए, लेकिन शरीर में जमा हो गए पेशाब को निकालने के लिए बायपास सर्जरी जरूर की गई। वैसे कोवल बंगाल ही नहीं देश बर को इंतजार है कि कविगुरु की मौत कैसे हुई थी इसका पता सबको चले।

 

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