जगदीश यादव

jagdish kurta

लेखक- अभय बंग पत्रिका व www.abhaytv.com के सम्पादक और पश्चिम बंगाल भाजपा ओबीसी मोर्चा के मीडिया प्रभारी हैं। मोबाइल -9804410919

साफ कहे तो मीडिया के साथ डांट-डपट कोई नई बात नहीं है। लेकिन यह भी सच है कि किसी भी देश में लोकतंत्र की रक्षा के लिये मीड़िया एक पहरुआ के तौर पर भी काम करती है। लेकिन गुरुवार को पाकिस्तान में जो भी हुआ वह भारत के लिये घातक तो नहीं के बराबर रहा लेकिन खुद पाक के लिये उक्त संस्कृति क्रियाकलाप वहां के कथित लोकतंत्र के लिये घातक साबित आज नहीं तो कल होगी। पाकिस्‍तान गये भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह का पाक मीडिया के द्वारा जिस तरह से ब्लैक आउट किया गया वह लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आस्था रखने वाले किसी भी व्याक्ति के लिये हैरत की बात है। मीटिंग के लिए पाकिस्‍तान गये राजनाथ सिंह के लिये वहां किसी तरह के मीडिया कवरेज का इंतजाम नहीं था। राजनाथ सिंह ने जो भी कहा उसे मीड़िया ने किसी तरह का तवज्जों नहीं दिया।  pakवहां  किसी चैनल पर भारत के गृहमंत्री के बयान व क्रियाकलापों को नहीं दिखाया गया। भारतीय मीडिया को छोड़ दें तो पाकिस्‍तानी चैनलों को भी राजनाथ सिंह के भाषण का लाइव प्रसारण नहीं होने दिया गया। पाक की नापाक हरकतें सिर्फ यहीं तक स्थिर नही रही। गृह मंत्रियों के मीडिया से बातचीत का कार्यक्रम भी रद्द कर दिया गया। लेकिन तारीफ तो इस बात के गृहमंत्री राजनाथ सिंह की करनी ही होगी कि उन्होंने पाकिस्तान पर तल्ख टिप्पणी करते हुए साफ कहा कि पाक आतंकियों को लंबे समय से पनाह देता रहा है। उनके द्वारा यह पूछे जाना कि आतंकवाद का कोई समर्थन कैसे कर सकता है। गृहमंत्री ने अफगानिस्तान और बांग्लादेश में भी आतंकी हमलों का जिक्र कर पाकिस्तान की धज्जियां उसके ही घर में उड़ा दी। पाक की गंदी मानसिकता का आलम तो यह रहा कि इस सम्मेलन की कवरेज के लिए नई दिल्ली से आए भारतीय मीडिया के सदस्यों को इसकी तस्वीरें लेने का मौका तक नहीं दिया गया। ऐसे में राजनाथ सिंह के द्वारा जिस तरह से पाक को जवाब दिया गया वहा जायज ही नहीं बल्कि समय की ही मांग रही। कहने की जरुरत नही है कि पाक में किस तरह से लोकतंत्र का गला घोंटा गया यह दुनियां के परिसर में विश्व मीडिया की बदौलत तो पहुंच ही चुका है। पाक मीडिया की यह चाटुकारिता से लबालब तस्वीर भी दुनियां के सामने जाहिर हो चुकी है। वहां जो भी हुआ वह लोकतंत्र की हत्या से कहीं कम नहीं था। जिसकी भारी किमत पाक मीडिया को उनके ही देश में ही चुकाना होगा। पाक मीडिया को भारत वर्ष सह विश्व के तमाम देशों की मीडिया से सिखने की जरुरत है कि किस तरह से मीडिया तमाम दबावों के बाद भी अपनी तस्वीर को साफ रखने की कोशिश करती है। विशेष कर पाक मीडिया को भारत की मीडिया से सिखना चाहिए की यहां की मीडिया तमाम आरोपों को सहने के बाद भी किस तरह से अपनी गरीमा को बरकरार रखने की कोशिश करती है। सबसे बड़ा सच तो यह है कि अगर भारत वर्ष में मोस्ट वांटेड दाऊद इब्राहिम भी अपनी बात सामने रखना चाहेगा तो उसे भी मीडिया अपनी बात को कहने का मौका देने की मानसिकता रखती है क्योंकि भारत व यहां की मीडिया को लोकतंत्र की पवित्रता का अर्थ पता है। पाक में बैठा किसी आतंकी को भी भारतीय मीडिया अपनी बात को कहने का मौका जरुर देगी। पाक की मीडिया को भी पता है कि भारत में लोकतंत्र जिंदा है औऱ मीडिया की आजादी भी बरकरार है वरना भड़काऊं भाषणों से नफरत की फसल उगाने वाले धर्म गुरु जाकिर हुसैन की अपनी सफाई को भारतीय मीडिया खबरों में स्थान नहीं देती। खैर पाकिस्तान में मीडिया पर सेंसरशिप का इतिहास कोई नया भी नहीं है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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