कोलकाता। महाश्वेता देवी की तमाम रचनाओं पर मशहूर फिल्म निर्माताओं ने फिल्मों का निर्माण किया था जिसके कारण वह देश भर में जन-जन तक पहुंच पाई थी । लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा प्रचार गोविंद निहलानी की एक फिल्म ‘हजार चौरासी की मां’ से मिली थी। निहलानी ने 1998 में हिंदी फिल्म ‘हजार चौरासी की मां’ के नाम से ही फिल्म बनाई जिसमें नक्सली आंदोलन से जुड़े एक बेटे की मां के भावनात्मक संघर्षों की कहानी थी। सन 1993 में कल्पना लाजिमी ने उनकी पुस्तक ‘रूदाली’ के नाम से ही फिल्म बनाई जिसमें राजस्थान की उच्च जाति में पुरुषों की मौत पर किराये पर शोक मनाने और क्रंदन करने आने वालीं महिलाओं की कहानी थी। उनकी लघुकथा ‘चोली के पीछे’ पर इतालवी निर्देशक इतालो स्पिनेली ने भी बहुभाषी फिल्म ‘गैंगोर’ बनाई जिसमें महिलाओं के अधिकार का मुद्दा उठाया गया था।

उनकी प्रमुख कृतियों में हजार चौरासी की मां, अरण्य अधिकार के अलावा ब्रेस्ट स्टोरीज, झांसीर रानी, अग्निगर्भ, सिद्धू कान्हुर डाके, बिश-एकुश, सुहाग बसंत और तीन कौड़ीर साध शामिल हैं। वे आजीवन आदिवासियों के हित में काम करती रहीं। उनका न सिर्फ आदिवासी समाज से लगाव रहा बल्कि वह  शासन के समक्ष उनकी सबसे बड़ी पैरोकार भी रहीं। ममता बनर्जी भी मानती हैं कि दीदी ने सिंगूर और नंदीग्राम भूमि अधिग्रहण के खिलाफ उनके आंदोलन में बड़ा साथ दिया था। आदिवासियों, उपेक्षितों और दबे-कुचलों की आवाज बन चुकीं विख्यात लेखिका महाश्वेता देवी को ममता बनर्जी का करीबी माना जाता था।  सिंगुर और नंदीग्राम में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन के दौरान जिन बुद्धिजीवियों ने खुलकर ममता का समर्थन किया था, उनमें महाश्वेता देवी का नाम सबसे ऊपर था। उन्होंने आदिवासियों और उपेक्षित ग्रामीणों को समूहों में संगठित किया ताकि वे लोग अपने-अपने क्षेत्रों में विकास कार्यों का लाभ उठा सकें।

 

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