अब बंगाल में शराब बंदी के लिये राजनीतिक लामबंदी

jagdish kurta

लेखक अभय बंग पत्रिका व  अभय टीवी डॉट कम के सम्पादक हैं।

 

जगदीश यादव

कोलकाता। कई मामलों में बदनाम रहे बिहार में पूर्ण शराब बंदी के बाद से देश भर के तमाम राज्यों में शराब बंदी का मामला जोरसोर से उठ रहा है। माना जा रहा है कि अब पश्चिम बंगाल में भी शराब बंदी की ओर सरकार कदम बढ़ा सकती है। हलांकि उक्त मामले में अधिकारीक तौर कोई निर्देश नहीं आये है। बंगाल में भी शराबबंदी का नारा बुलंद होने लगा है। लेकिन, शराबबंदी की मांग को लेकर जो कुछ किया जा रहा है, उसमें जनसमर्थन कम प्रपंच ज्यादा नजर आ रहा।

wine-in-glasses 1sविधानसभा में कुछ विधायकों ने यह सवाल भी खड़े किए कि जब बिहार में पूर्ण शराब बंदी हो सकता है तो हमारे राज्य में क्यों नहीं। शराब बंदी की मांग बिहार के ही पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में अब जोर पकड़ है। ज्ञात हो कि फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी के विधायक अली इमरान ने राज्य विधान सभा में कहा कि बिहार में शराब बंदी हो सकती है तो पश्चिम बंगाल में क्यों नहीं? गौरतलब है कि 1 अप्रैल से ही बिहार में पूर्ण शराब बंदी की घोषणा हो गई थी और इसका सख्ती से पालन भी रहा है हो। पश्चिम बंगाल विधानसभा में बजट पर हो रही चर्चा के दौरान विधायक अली इमरान ने यह मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, ‘अगर बिहार में पूर्ण शराब बंदी हो सकती है तो पश्चिम बंगाल में क्यों नहीं? शराब बंदी से राज्य की कानून व्यवस्था भी ठीक होगी।  हालांकि, उनके इस मुद्दे पर सत्ताधारी पार्टी के विधायकों ने विरोध जताया लेकिन इमरान के समर्थन में कई विधायक खड़े नजर आए। लेकिन विरोधी दल फिलहाल शराब बंदी के लिये एकजुट होते दिख रहें हैं।

एक अधिवक्ता का कहना है कि भारतीय संविधान के निर्देशक नियमों में धारा -47 के मुताबिक चिकित्सा उद्देश्य के अतिरिक्त स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीले पेयों और ड्रग्ज पर सरकार प्रतिबंध लगा सकती है। जिनमें तत्कालीन मद्रास प्रोविंस और बॉम्बे स्टेट व कई अन्य राज्य शामिल थे, ने शराब के खिलाफ कानून पारित किया था। 1954 में भारत की एक चौथाई आबादी इस नीति के तहत आ गई। तमिलनाडु, मिजोरम, हरियाणा, नगालैंड, मणिपुर, लक्षद्वीप, कर्नाटक ने शराबबंदी तो लागू की। लेकिन, सरकारी खजाना खाली होते देखकर यह पाबंदी हटा दी गई। इस नीति का लाभ सिर्फ इसे लागू करने वाली एजंसियों और अवैध शराब बनाने वालों को पहुंचा जिन्होंने खूब धन कमाया।बता दें कि इस राज्य में जहरीली शराब से मौत की घटनाएं अक्सर घटती ही रहती है। खैर जो भी हो लेकिन अब शराब विरोधी आवाज को जहां सत्ताधरी दल के नेता महज राजनीति करा दें रहें हैं वहीं विरोधी सरकार की मंशा पर शक-सुबह जाहिर कर रहें हैं। यानी दोनों तरफ से ही राजनीति का दौर शुरु गया है हो। जिसके कारण शराब के नशे से ज्यादा अब शराब की राजनीति हो गयी है।

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