मुरली चौधरी

13260019_1108973189163297_5592879415129981742_n(1)

परिचयः मुरली चौधरी पेशे से पत्रकार हैं लेकिन मन काव्य की गलियों में रमता है।

घर-आंगन में खेलकर बीता अपना बचपन ।
बचपन के दिन रहते थे हम स्वछन्द मगन ।

आंगन से झाँक कर, देखा था नीला गगन ।
आंगन ही तो था, बचपन का प्यारा वतन ।

पंतग, डोर, लटाई और लट्टू था अपना धन ।
खेल-कूद, उठा-पटक में ही लगता था मन ।

लौटा दे कोई मेरा वह आंगन वाला बचपन ।
लौटा दे कोई बचपन के उमंग और धड़कन ।

लौटाने वाले को “मुरली” का सौ बार नमन ।
बचपन को ढूढू कस्तुरी-मृग-सा मैं वन-वन ।
                                         

Spread the love
  • 4
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
    4
    Shares
  •  
    4
    Shares
  • 4
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •