santosh sharma

लेखक परिचयः पेशे से पत्रकार हैं व विज्ञान समर्थक तर्कशास्त्री के रुप में भी परिचय

संतोष शर्मा

 

मदर टेरेसा को मिलेगी संत की उपाधि

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा को आगामी 4 सितंबर, 2016  को संत की उपाधि दी जाएगी। पोप फ्रांसिस  ने 15 मार्च, 2016 को कार्डिनल परिषद में यह घोषणा की। कोलकाता में 45 साल तक गरीबों और बीमार लोगों की सेवा करने वाली मदर टेरेसा के निधन के 19 वर्ष बाद वेटिकन ने यह कदम उठाया है।

कैथलिक न्यूज एजेंसी के मुताबिक, मदर टेरेसा को संत की उपाधि देने के लिए वेटिकन पैनल की बैठक में टेरेसा सहित 5 नामों पर विचार किया गया। इनमें मदर टेरेसा का नाम सबसे ऊपर था। वेटिकन की ओर से कोलकाता स्थित मिशनरीज ऑफ चैरिटी के मुख्यालय मदर्स हाउस को भेजे संदेश में कहा गया कि पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत का दर्जा देने की औपचारिक मंजूरी दे दी है। इसके लिए इस बर्ष 4 सितंबर की तारीख तय की गई है। मदर टेरेसा का निधन 5 सितंबर, 1997 में 87 साल की उम्र में हुआ था।

ऐसे मिलती है उपाधि

कैथलिक परंपरा के अनुसार संत का दर्जा उसी को दिया जाता है, जिसने अपने जीवन में कम से कम दो चमत्कार किए हों। इन चमत्कारों की पुष्टि होना जरूरी होता है। संत द्वारा या उसकी समाधि पर की गई प्रार्थना से अगर किसी का असाध्य रोग ठीक हो जाए तभी उसे चमत्कार माना जाता है। वेटिकन की एक समिति इन चमत्कारों की जांच करती है जिसमें कुछ धर्मगुरु और चिकित्सक होते हैं। समिति द्वारा चमत्कारों की पुष्टि करने के बाद पोप वेटिकन के समारोह में ‘संत’ की उपाधि देने की आधिकारिक घोषणा करते हैं।

चार चरणों की प्रक्रिया

कैथलिक ईसाइयत में संत की उपाधि देने की प्रक्रिया व्यवस्थित और समयसाध्य है। ‘संत’ की आधिकारिक घोषणा चार चरणों के बाद होती है। पहले चरण में उम्मीदवार को ‘प्रभु का सेवक’ घोषित किया जाता है। दूसरे चरण में उसे ‘पूज्य’ और तीसरे चरण में पोप द्वारा उसे ‘धन्य’ घोषित किया जाता है। ‘धन्य’ घोषित करने के लिए एक चमत्कार की पुष्टि जरूरी है। अंतिम चरण में ‘संत’ घोषित किया जाता है।

मदर के दो चमत्कार  

मदर के पहले चमत्कार की पुष्टि कोलकाता और दूसरे चमत्कार की पुष्टि ब्राजील में हुई। 19 अक्तूबर, 2003 को तत्कालीन पोप जाॠन पॉल द्वितीय ने टेरेसा को ‘बियाटिफाइड’ यानी ‘धन्य’ घोषित किया था। वर्ष 2003 के 19 अक्टूबर को मदर टेरेसा के बियैटिफिकेशन के लिए रोम में तीन लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंचे थे। ‘बियैटिफिकेशन’ संत का दर्जा दिए जाने की दिशा में पहला कदम होता है।

पहला चमत्कार:  

पोप जॉन पॉल द्वितीय 2002 में कोलकाता की एक बंगाली आदिवासी महिला मोनिका बेसरा के स्वस्थ होने को टेरेसा का पहला चमत्कार माना था। माना जाता है कि मोनिका कैंसर से पीड़ित थी और मदर टेरेसा की प्रार्थनाओं के कारण 1998 में वह स्वस्थ हो गई।

दूसरा चमत्कार: 

पोप फ्रांसिस ने बीते साल टेरेसा के दूसरे चमत्कार को मान्यता दी थी। वेटिकन के विशेषज्ञों ने 2008 में ब्राजील के एक मामले को चमत्कार के रूप में पेश किया था। ब्राजील के इस शख्स के दिमाग में कई ट्यूमर थे, जो टेरेसा की प्रार्थना से ठीक हो गए थे।

टेरेसा का ऐसे बदला जीवन : 

मैसिडोनिया में 26 अगस्त, 1910 को जन्मीं मदर टेरेसा के माता-पिता अल्बानियाई थे। 17 वर्ष की उम्र  में सिस्टर लोरेटो से दीक्षा लेने के बाद टेरेसा ने मिशन के लिए काम शुरू किया। 1929 में कोलकाता आने के बाद उन्हें तपेदिक (टीबी) हो गया। आराम के लिए उन्हें दार्जिलिंग भेजा गया। दार्जिलिंग जाते समय टेरेसा को लगा कि कॉन्वेंट छोड़कर उन्हें गरीबों के बीच रहना चाहिए। इसे उन्होंने ईश्वर का आदेश माना। इसी के बाद उन्होंने झुग्गियों में काम शुरू किया। वह गरीब बच्चों को पढ़ातीं और बीमारों की सेवा करती थीं। 1950 में उन्होंने कोलकाता में मिशनरीज आफ चैरिटी की स्थापना की। 1951 में उन्हें भारतीय नागरिकता मिली।

मदर टेरेसा को मानवता की सेवा के लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए। भारत सरकार ने वर्ष 1962 में  पद्मश्री और वर्ष 1980 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया था। ग़रीबों और असहायों की सहायता करने के लिए किये गए कार्यों की वजह से मदर टेरेसा को वर्ष 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला। उन्हें यह पुरस्कार दिया गया था।

मदर मेरे लिए भगवान : 

पश्चिम बंगाल के दक्षिणी दिनाजपुर जिले की एक जनजातीय महिला मोनिका बेसरा ने वर्ष 1998 के 5 सितंबर की रात को याद करते हुए कहा कि मैंने जब मदर टेरेसा की तस्वीर की ओर देखा तो मुझे उनकी आंखों से सफेद रोशनी की किरणें आती दिखाई दीं। उसके बाद मैं बेहोश हो गई। अगली सुबह उठने पर ट्यूमर गायब हो गया था। बेसरा ने कहा कि वह मेरे लिए भगवान समान हैं।

 मदर टेरेसा के चमत्कार को तार्किक चुनौती

Prabir Ghosh

भारतीय विज्ञान व युक्तिवादी समिति (साइंस एंड रेशनलिस्ट्‌स एसोसिएशन ऑफ इंडिया) के अध्यक्ष प्रबीर घोष

भारतीय विज्ञान व युक्तिवादी समिति (साइंस एंड रेशनलिस्ट्‌स एसोसिएशन ऑफ इंडिया)  के अध्यक्ष प्रबीर घोष ने कहा कि उन्हें मीडिया के माध्यम से यह खबर मिली है कि पोप फ्रांसिस  ने घोषणा की है कि गत दिसंबर को वैटिकन की ओर से यह बताया गया कि मदर टेरेसा के चमत्कार के ठोस सबूत मिले है। सबूत यह है कि ब्राजील के इस शख्स  के दिमाग में कई ट्यूमर थे, जो मदर टेरेसा की प्रार्थना से ठीक हो गए थे। उस शख्स को मदर की विदेही आत्मा ने बीमारी से स्वस्थ्य कर दिया। इसीलिए मदर को 4 सितंबर, 2016 को संत की उपाधि दी जाएगी।

श्री घोष ने युक्तिवादी समिति की ओर से पोप फ्रांसिस  से कई सवाल किए हैं,  आप के लिए आत्मा की परिभाषा क्या है? हिन्दु, ईसाई, इस्लाम, एहुदी इत्यादि धर्म  आत्मा के अविनश्वर को विश्वास करता है। किन्तु इनमें से हर एक धर्म में आत्मा की परिभाषा अलग-अलग है। क्या पोप सर्वधर्म स्वीकार्य योग्य आत्मा की कोई भी परिभाषा दे सकेंगे?  जबकि विज्ञान कहता है, आत्मा को लेकर परिभाषित कोई भी परिभाषाी अविनश्वार नहीं है, बल्कि आत्मा नश्वर है।  मूलबोद्ध धर्म में आत्मा को नश्वर कहा गया है। अतः अविनश्वर मदर टेरास की आत्मा ने बीमारी से स्वस्थ्य किया है, यह काल्पनिक दावा है। यीसू के नाम पर झूठा दावा नहीं करने लिए पोप से अनुरोध कर रहा हूं।

प्रबीर घोष ने कहा कि ऐसा कहना कि मदर चमत्कारी हैं, पूर्णतया गलत है।  मोनिका को मदर टेरेसा की मृत्यु के एक साल बाद सिरदर्द और पेटदर्द की शिकायत के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। जिन डॉक्टरों ने मोनिका बेसरा नाम की इस महिला का इलाज किया था, उनका कहना है कि मदर की मृत्यु के कई साल बाद महिला भी वह दर्द सहती रही। श्री घोष ने कहा कि मदर टेरेसा की मृत्यु के कई साल बाद तक मोनिका बेसरा का इलाज होता रहा था।

मदर टेरेसा स्वयं किसी भी चमत्कार में विश्वास नहीं करती थीं। वो झाड़-फूंक, तंत्रमंत्र आदि में विश्वास नहीं मानती थी। टेरेसा जब भी बीमार पड़ती थी तो वे इलाज के लिए अस्पताल जाती थीं। किन्तु बड़ी दुःख की बात है कि मदर टेरेसा को मिथ्या चमत्कारी सबूत के आधार पर रोमन कैथोलिक चर्च के संत की उपाधि दिये जाने की घोषणा की है। इसका हम युक्तिवादी, तर्कवादी सख्त विरोध करते हैं। यदि उन्हें संत की उपाधि ही देनी है तो मदर के मानवसेवा के नाम पर दी जाए।

मिशनरीज ऑफ चैरिटी की प्रवक्ता सुनीता कुमार और वेटिकन सिटी को चुनौती देते हुए युक्तिवादी प्रबीर घोष ने कहा कि एक हादसे में उनके बांए कंधे की हड्डी पांच टुकड़े हो गई है। यह एक साल पहले का हादसा है। उन्होंने कहा कि यदि मदर टेरेसा के चमत्कार से उसके कंधे को स्वस्थ कर दिया जाय तो मैं यह स्वीकार कर लूंगा कि मदर को चमत्कारी शक्ति है। क्या पोप प्रबीर घोष की चुनौती का सामना करेंगे? मुझे मालूम है कि किसी भी तरह यह संभव नहीं है। आधुनिक चिकिस्ता से इलाज हो सकता है। किन्तु पाखंड से किसी भी दिन इलाज नहीं किया जा सकता हैष

श्री घोष ने कहा कि इस तरह के दावे हर धर्म में चमत्कारिक संप्रदाय स्थापित करने के लिए किए जाते हैं। जैसे आजकल मदर टेरेसा के नाम पर ईसाई धर्म कर रहा है। यदि  मिथ्या दावों और चमत्कारों को आधार पर मदर को संत की उपाधि दी जाती है तो वह उनकी परंपरा के साथ नाइंसाफ़ी होगी। यदि इस तरह के चमत्कारों की कहानियां फैलाई गईं तो गांव-जवार में रहने वाले कम पढ़े लिखे लोग बीमारियों का अस्पताल में इलाज करवाने की बजाए चमत्कारियों को ही सहारा लेगें। सिर्फ और सिर्फ अंधविश्वास ही फैलेगा। इसीलिए युविक्तवादी समिति की ओर से यह अनुरोध किया जा रहा है कि   भावनाएं में नहीं बह कर ईमानदारी के साथ मदर से काल्पनिक चमत्कार के आधार पर संत की उपाधि देने को बारे में विचार करें। ( उक्त विचार लेखक के हैं और इससे समाचार पोर्टल का कोई सरोकार नहीं है)

 

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