नई दिल्ली/कोलकाता। बंगाल सरकार के कर्मचारियों के बकाया महंगाई भत्ता (डीए) का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। कांफेडरेशन आफ स्टेट गवर्नमेंट इंप्लोयीज और यूनिटी फोरम नामक राज्य सरकार के दो कर्मचारी संगठनों ने इस बाबत सुप्रीम कोर्ट में दो अलग-अलग कैवियेट दाखिल की है। गौरतलब है कि कलकत्ता हाई कोर्ट पहले ही बकाया डीए का भुगतान करने का आदेश दे चुका है। हाई कोर्ट राज्य सरकार की पुनर्विचार याचिका को भी खारिज कर चुका है। अदालत ने कहा था कि डीए कर्मचारियों का कानूनी अधिकार है। यह सरकार की तरफ से दिया जाने वाला कोई ‘दया दान’ नहीं है। हाई कोर्ट ने तीन महीने के अंदर बकाया डीए का भुगतान करने को कहा है। इसके बाद राज्य सरकार अब सुप्रीम कोर्ट का रूख करने वाली है। इसी को देखते हुए सरकारी कर्मचारियों के संगठनों ने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में कैवियेट दाखिल कर दी है। इस मसले पर राजनीति भी तेज हो गई है। बंगाल भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजुमदार ने कहा कि हाई कोर्ट का फैसला ममता बनर्जी के गाल पर तमाचा है। वह सरकारी कर्मचारियों को उनका हक नहीं देना चाहती। ममता बनर्जी अपने पसंदीदा क्लबों को रुपये बांटती हैं। अपने गुंडों को पैसे देती है लेकिन सरकारी कर्मचारियों को उनका बकाया डीए देने के लिए उनके पास रुपये नहीं हैं। राज्य सरकार के कर्मचारियों का भत्ता केंद्र सरकार के कर्मचारियों के भत्ते से 31 प्रतिशत कम है। दूसरी तरफ विधायक तापस राय ने कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सरकारी कर्मचारियों का हमेशा ख्याल रखा है। बंगाल सरकार ने कभी भी कर्मचारियों को डीए नहीं देने की बात नहीं की है। इससे पहले जब भी डीए देने की जरूरत पड़ी, उन्होंने दिया है।

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