जगदीश यादव
भारत के खिलाफ पाकिस्तान व चीन द्वारा हर मोर्चे पर साजिश के जाल बिछाए जाते रहें हैं। कभी भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने के खिलाफ साजिश रची जाती है तो कभी सीमा पर। लेकिन भारत इनके नापाक इरादों का जवाब देता रहा है और देगा भी। भारत के राज उगलवाने के लिये युवतियों के उपयोग से लेकर कथित तंत्र-मंत्र करने के मामले मीडिया से लेकर जनचर्चा में आते रहें हैं। दोनों देश कई मोर्चों पर भारत के खिलाफ हर दिन अपनी हरकतों को अंजाम दे रहें है। दोनों देश हिंदुस्तान को किसी भी किमत पर तबाह देखना चाहते हैं। चीन हमेशा पाकिस्तान को इस लिये मदद करता रहा है ताकि वह भारत को उलझाए रखे। वहीं पाकिस्तान भी चीन की दोस्ती की चमक दिखाकर भारत को धमकाने की नाकाम कोशिश करता रहा है। लेकिन सच तो यह है कि भारत इन दोनों देशों की हिमाकत का जवाब हर मोर्चे पर दे रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा है कि बदलते वक्त में किसी देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के तौर-तरीके भी बदल गए हैं। युद्द के नए हथियार के तौर पर सिविल सोसायटी यानी समाज को समाप्त करने की तैयारी की जा रही है।अजीत डोभाल के इस चेतावनी से सतर्क रहने की जरुरत है। वैसे भी भारतवर्ष सर्व धर्म सम्प्रदाय में आस्था रखता है। भारत एक ऐसा देश है जहां धार्मिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता को कानून तथा समाज, दोनों द्वारा मान्यता प्रदान की गयी है।अब अजीत डोभाल के इशारों को आने वाले खतरे की घंटी मान ले तो बड़ी बात नहीं होगी।बकौल डोभाल, ‘राजनीतिक और सैनिक मकसद हासिल करने के लिए युद्ध अब ज्यादा असरदार नहीं रह गए हैं।युद्ध बहुत महंगे होते हैं, हर देश उन्हें अफोर्ड नहीं कर सकता। उसके नतीजों के बारे में भी हमेशा अनिश्चितता रहती है। ऐसे में समाज को बांटकर और भ्रम फैलाकर देश को नुकसान पहुंचाया जा सकता है।’ ‘लोग सबसे महत्वपूर्ण हैं। इसलिए युद्ध की चौथी पीढ़ी के तौर पर नया मोर्चा खुला है, जिसका टारगेट समाज है।’ उन्होंने कहा कि पाकिस्तान, चीन, म्यांमार और बांग्लादेश से सटी हमारी सीमा की लंबाई 15,000 किलोमीटर लंबी है। इस जगह बॉर्डर मैनेजमेंट में पुलिस का बड़ा रोल होना चाहिए।15, 000 किलोमीटर लंबी सीमा पर अलग-अलग तरह की समस्याएं हैं। बहरहाल सच तो यह भी है कि 1947 में देश के आजाद होने के बाद से ही सांप्रदायिक संघर्ष की घटनाएं समय-समय पर भारत की समस्या बनती रही है।हिंदू व अल्पसंख्यकों के बीच तनाव की घटनाओं से अभी तक की केन्द्र व तमाम राज्य सरकारें इंकार नहीं कर सकती है। भारत के विभाजन के दौरान होने वाले खूनी संघर्ष कहीं न कहीं ब्रिटिश राज की साजिश रही है। कलकत्ता में 1946 के डायरेक्ट एक्शन डे के बाद हिंदुओं और मुसलमानों के संघर्ष की घटना की भीषणता से नकारा नहीं जा सकता है और इसकी स्मृति भी रुह कंपा देती है। इस देश में हम दिपावली व ईंद पर एक दुसरे का मुंह मीठा करते हैं। स्कूलों में सभी वर्ग के विद्यार्थी पढ़ते लिखते हैं व अपना खाना भी सांझा करते हैं। लेकिन राई भर की बात पर समाज व सम्प्रदाय के नाम पर हम तन जाते हैं। एक दुसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। कभी इस कदर पागल हो जाते हैं कि हमे कुछ सुझता ही नहीं हैं। सच तो यह है कि आज भारत-बांग्लादेश सीमांत अंचलों में ऐसे तत्वों को मिशन पर लगाया गया है जो समाज व सम्प्रदाय के नाम पर बंगाल की धरती से शुरु कर देश भर में हिंसा की आग को लगा सकें। ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के इस कथन कि, बदलते वक्त में किसी देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के तौर-तरीके भी बदल गए हैं। युद्द के नए हथियार के तौर पर सिविल सोसायटी यानी समाज को समाप्त करने की तैयारी की जा रही है।अजीत डोभाल के इस चेतावनी से सतर्क रहने की जरुरत है। (लेखक एसजेए (इंडिया) न.2 (प.बंगाल) जिला एम्बूलेंस के डिवीजनल कमाण्डेट (मुख्यालय) है।

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