jagdish kurta

लेखक अभय बंग पत्रिका व अभय टीवी डॉट कम के सम्पादक हैं

नारदलोक 

जगदीश यादव

जैसे ही घर आया तो देखा की गुरुदेव नारदजी मेरे घर में रखें हुए पानी के ड्रम के उपर रखे गये लकड़ी के तख्त पर बैंठे हुए है। वह गंभीर मुद्रा में उपर देखें जा रहें थें। मैने उन्हें देखते ही दण्डवत प्रणाम किया और पूछा, गुरुदेव कहां खों गये हैं? दस सेकेण्ड के बाद उनकी तन्द्रा भंग हुई तो उन्होंने आशिर्वाद देते हुए कहा कि प्रभु तुम्हे कालचक्र को समझने की शक्ति प्रदान करें।     मै समझ नहीं पा रहा था कि आज उन्होंने कालचक्र की शक्ति को समझने का आशिष क्यों दिया है।  बंगल चुनाव परिणाम जिसे अभीतक कोई प्रमाणिक तौर पर समझ नहीं पाया है कि तरह नहीं समझ सका सका। मैने फिर पूछा देखिए सर कालचक्र का किस्सा क्या है यह नहीं समझ पा रहा हूं। नारदजी मुस्कराने लगे और कुछ बोल ही रहें थें कि घर में काम करने वाली बाई कलावती नारदजी के लिये पपीते का जूस लेकर आ गई। उन्होंने जूस पिया और फिर कहने लगे बड़े पत्रकार बनते फिरते हो धरती की खबर क्या रखोंगे जब तुम्हें अपने सजातियों  खबर नहीं है?

भला मै क्या कहता मै मौन ही रहा। और फिर गुरुवर शुरु हो गयें। देखों कलम की सूखी निब,  कालचक्र सृष्टि के जन्म से ही गतिशील है। जिसकी उपेक्षा देव भी नहीं कर सकते हैं।  जो व्यक्ति सदैव सावधान और चौकन्ना रहता है, वही समय के तीव्र वेग के साथ तालमेल बैठाकर आगे बढ़ सकता है। इसकी मुठ्ठियों में तूफान के रुख को भी मोड़ने की असीम ताकत भगवान् ने प्रदान की है। इतना कहकर नारदजी फिर मौन हो गये थें। मैने लेकिन कालचक्र के बारे में बताने के पिछे आपका मकसद क्या था?

गुरुवर ने कहा कि यही कि तुम जमीन पर रहो। जमीन पर खड़े रहकर यमराज के गदे को खिंचने की कोशिश मत करो। यानी औकात में रहो औऱ खुद जिन्दा रहो व अन्य को भी चैन से जिन्दा रहने दो।  वरना जब तुम्हारा हिसाब किताब कालचक्र करने लगेगें तो सबकुछ ब्याज के साथ लौटाना होगा। अब सुनों इसी काली मईया की नगरी में तुम्हारे जैसे तमाम पत्रकार हैं जो अपने को पता नहीं क्या समझते हैं। एक ने तो अति कर दी थी। एक समय था कि उक्त मिठाई पाड़े (बदला नाम) ने छलबल के सहारे एक योग्य पत्रकार की कुर्सी पर जबरन उसके सामने जा बैठा था। लेकिन कालचक्र का इंसाफ देखो उसी दिन मिठईया के घर में मातम पसर गया। कारण उसके लाल ने उपर का रास्ता चून लिया था।

मानव जाति के अहंकार को तो देखो।  लेकिन उसे सुधरना नहीं था,मिठाई को काल के चक्र को समझना नहीं था। फिर से अति शुरु की ।जोड़तोड़ कर उसी अखबार का सम्पादक बन बैठा। फिर शुरु की मालिक के साथ जोड़तोड़ की राजनीति। अब उसे अखबार से धकिया दिया गया। तब मिठाई का मुंह ही नही कलेजा भी सूज गया। सारे सपने टूट गये। काल चक्र को नहीं समझ पाने का हाल तो यह है कि अब मिठाईया को फिर से मालिक के पांव पकड़ने पड़े तब कहीं नौकरी तो फिर मिली लेकिन सम्पादक का पद कालचक्र ने छिन लिया। नारदजी कुछ देर के लिये मौन रहें और फिर मुझसे कहने लगे इसलिये तुम्हे समझा रहा हूं कि काल चक्र के आगे तुम जैसों की औकात उस चिंटी के जैसा है जब उसकी मौत आती है तो पंख लग जाते है। नारदजी से मै कुछ कहने ही वाला था कि अचानक बिना अवसर दिये ही वह प्रभु का नाम जपते-जपते नजर से ओझल हो गये।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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