की संतान के स्वास्थ्य, लंबी आयु और सुख-समृद्धि की मंगल कामना

प्रभात गुप्ता
कोलकाता। संतान के स्वास्थ्य, लंबी आयु और सुख-समृद्धि से जुड़ी जिउतिया (जीवित्पुत्रिका) व्रत पर आज माताओं ने गंगा सहित अन्य जलाशयों में डुबकी लगाई। कोलकाता सहित राज्य के हावड़ा, हुगली, नदिया, उत्तर व दक्षिण चौबीस परगना के अलावा उपनगरों खासकर औद्योगिक इलाके के हिन्दीभाषी बहुल क्षेत्रों में इस दिन जिउतिया की धूम रही। मंगलवार रात से लगातार हो रही बारिश के बावजूद आज दिन ढलने के साथ ही व्रती माताओं का हुजूम गंगा घाटों पर उमड़ा। प्राप्त सूचना के अनुसार कोलकाता के बाबूघाट, पोर्ट अंचल इलाके के समस्त छोटे-बड़े घाटों पर इस दिन महिलाओं की भीड़ देखी गई। कोलकाता, हावड़ा के अलावा उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिले में महिलाएं जिउतिया पर गंगा स्नान के बाद आराध्य देवता की आराधना की। उत्तर 24 परगना जिले के अंतर्गत बरानगर, आलमबाजार, कमरहट्टी, टीटागढ़, बैरकपुर, गारुलिया, जगदल, कांकीनाड़ा, भाटपाड़ा, नैहट्टी, गौरीपुर और हाजीनगर के जूट मिल इलाकों में जगह-जगह महिलाएं पूजा-अर्चना की। ऐसी मान्यता है कि सनातन धर्मावलंबियों में जिउतिया व्रत का खास महत्व है। आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका (जीमूतवाहन) व्रत करने का बड़ा माहात्म्य है। सुहागिन महिलाएं इस दिन निर्जला उपवास करती हैं। उत्तर पूर्वी राज्यों में यह व्रत बहुत लोकप्रिय है। यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के कई क्षेत्रों में किया जाता है। इस दिन संतान प्राप्ति एवं उसकी लंबी आयु के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं। लगभग 36 घंटे का निर्जला व्रत रखने के बाद व्रत का पारण गुरुवार सुबह (30 सितंबर) किया जाएगा। व्रतधारी महिलाएं सूर्योदय के बाद से दोपहर 12 बजे तक पारण के साथ जिउतिया व्रत का समापन करेंगी। प्रतिवर्ष आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इसे जितिया या जिउतिया व्रत के नाम भी जानते हैं। माताएं अपनी संतान के स्वास्थ्य, लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना से यह व्रत रखती हैं। जिउतिया व्रत को माताएं अपनी संतान के स्वास्थ्य, लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान निरोग और सुखी रहते हैं। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में महिलाएं रखतीं हैं। इस दौरान महिलाएं दिन भर व्रत रखतीं हैं और शाम को स्नान के पश्चात एक जगह जमा होकर कथा सुनतीं हैं। बताते हैं कि यह परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है। व्रत का संबंध महाभारत काल से है। कहा जाता है कि युद्ध में पिता की मौत से नाराज़ अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला था। इससे श्रीकृष्ण को बेहद दुख हुआ। उन्होंने अपने सभी पुण्य कर्मों का फल उत्तरा के संतान को देकर उसे दोबारा जीवित कर दिया। उत्तरा का गर्भ फिर से जीवित हो उठा। जब इस दिव्य संतान का जन्म हुआ तब उसे जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। तभी से ये व्रत मनाने की परम्परा चली आ रही है।

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