कबीर कलजुगिया

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लेखक परिचयः लगभग तीन दशक से अंग्रेजी व हिन्दी के समाचार पत्रों में बड़े ओहदें पर पत्रकारिता। अपने अक्खड़ व बेबाकीपन से भी जाने जाते हैं। अपनी डफली अपना राग । जहां से खड़े वहीं से रास्ता शुरु।

अशोक पाण्डेय

भारत ने पड़ोस में कुछ ऐसे तत्वों को झेलने की आदत डाल ली है जो रात-दिन भौंकने के आदी हैं। और शायद इस भौकने के सुर से दिल्ली में बैठे हमारी सरकार के नुमाइंदों को नींद अच्छी आती है। जिन्ना चाचा ने जिस सोच के तहत पाकिस्तान को बसाया था शायद वह सोच भी उन्हीं के साथ दफन हो गई थी। बाद में भारत को कई और टुकड़ों में बांटने की पाक ने साजिश रची, लेकिन हर बार उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ी। हम तो नहीं बंटे, अलबत्ता पाक के दो टुकड़े जरूर हो गये। एक फौजी शासक ने तो बाकायदा दिल्ली में सुबह की चाय पीने तक का प्लान बना डाला था। मगर लालबहादुर शास्त्री ने उन्हें छठी का दूध याद करा दिया था।
शास्त्री जी के अधूरे काम को इंदिरा गांधी ने पूरा किया था, पाक के दो टुकड़े कराके। लेकिन आदत जिसे रोज भौंकने की हो जाय, उस जीव को चुप रखना बड़ा अटपटा काम है। कई बार मुंह की खा चुके पाकिस्तान की नीयत में कोई बदलाव नहीं आया। एक राज की बात यह भी है कि रोज लात खाने वाला लतखोर हो जाता है। वैसे, पड़ोस से भौंकने की जो आवाज आ रही है, वह बेनजीर और आसिफ जरदारी के पुत्र बिलावल की है। बिलावल बेचारे कश्मीर की आजादी के लिये गला फाड़ रहे हैं और लगातार भारत से जंग की बात कर रहे हैं। सलाह दी जा सकती है मियां बिलावल को। उनके अब्बा हुजूर ठहरे बिजनेसमैन। सरकारी ठेकों में उन्हें मिस्टर टेन परसेंट कहा जाता था, दलाली दी जाती थी। पहले पता लगाइये कि बेनजीर को गोली मारने वाले ने कितनी दलाली आपके फादर को दी थी? नरेंद्र मोदी या भारत की बात करने वाले बालक से कहा जा सकता है कि अच्छे बच्चे जिद नहीं करते। आपके नाना हुजूर ने जिद की थी, पाकिस्तानियों ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। जिद में ही पाक के सारे वर्दीधारी शासक मिट गये।

एक शिकायत है आपसे मियां, बड़े शरारती हो। पाक में चुनाव जीतने के लिये मोदी नाम के खिलौने से खेलते हो। क्यों? आपके बाप-दादों का नाम क्या पाक में अब नापाक हो गया है? बिलावल बाबू, कश्मीर या भारत बच्चों के खेलने की चीज नहीं है। इससे जान भी जा सकती है। लेखक भारतमित्र के कार्यकारी सम्पादक हैं।

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