भाजपा से लेकर तृणमूल के लगे स्टाल

 

फिरोज आलम
कोलकाता। महाषष्ठी के दिन दोपहर बीतते ही महानगर कोलकाता की सड़कों पर दुर्गा पूजा दर्शनार्थियों का सैलाब उमड़ पड़ा। जैसे जैसे समय का पहिया खिसकता रहा जन आस्था का महा सैलाब दुर्गा पूजा मण्डपों में उमड़ता रहा। वहीं महानगर में पूजा के दौरान तृणमूल, भाजपा सहित माकपा खेमे के शिविर दुर्गा पूजा दर्शनार्थियों की जहां सेवा करते रहें वही पार्टी के रंग से ओतप्रोत पुस्तकों को लोगों को बेचते भी रहें। ज्ञात हो कि पश्चिम बंगाल पर चार दशकों से अधिक समय तक आधिपत्य रखने वाली वाम मोर्चा सरकारों ने राज्य के सबसे बड़े सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक त्यौहार दुर्गा पूजा से हमेशा खुद को दूर रखती रही थी लेकिन अब फिंजा बदली है। वाम नेताओं ने पूजा पंडालों को संरक्षण देने से न सिर्फ इंकार किया था बल्कि पूजा की बेहद हिंदू प्रकृति को जान-बूझकर अधिक महत्व नहीं देने की भी कोशिश की थी। वामपंथी सरकारों के परिपत्रों और दस्तावेज़ों में हमेशा इस त्यौहार को दुर्गा पूजा की बजाय शरदोत्सव कहा जाता था। दुर्गा पूजा पर राजनीतिक पार्टियों का प्रचार जमकर होता रहा। प्रदेश भाजपा सूत्रों ने बताया कि राज्य भर में पूजा के दौरान पंडालों के आस-पास तकरीबन 3000 बुकस्टॉल लगाये गये है। जिसमें पार्टी की विचारधारा पर आधारित कई पुस्तकें प्रदर्शित की जा रही है। बीजेपी की विचारधारा पर किताबों के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जनसंघ से जुड़ी कई किताबें इन स्टॉलों पर नजर आ रही है। इसके साथ ही राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी), नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर सामग्री प्रदर्शित कर लोगों को विवादास्पद मुद्दों से अवगत कराया जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस के नेताओं का 2011 से पहले से दुर्गा पूजा कमेटियों में शामिल होने का सिलसिला शुरू हुआ था। 2011 में सत्ता प्राप्ति के बाद बाद इन कमेटियों में टीएमसी नेताओं का बहुमत हो गया। ज्यादातर कमेटियों में टीएमसी नेता अध्यक्ष या संरक्षक के रूप में काबिज हो गए। खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उन दर्जनों पूजा कमेटियों की ओर से आयोजित दुर्गा पूजा में उदघाटन करतीं रहीं हैं, जिनमें टीएमसी नेता पदाधिकारी रहे। ऐसे में तृणमूल ने दुर्गा पूजा पर लगभग हर जगह स्टाल लगाया। दुर्गोत्सव के दौरान आयोजक पंडाल व लाइटिंग के जरिए कन्याश्री व सबुज साथी के बहाने तृणमूल का प्रचार हो रहा है। बहरहाल राजनीति विशेषज्ञों का मानना है कि राजनीति में धर्म का आना जितना अनुकूल है, धर्म में राजनीति का प्रवेश करना उतना की प्रतिकूल भी है, लेकिन इसके बावजूद सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के साथ-साथ राज्य की विरोधी पार्टियां भी पूजा के दौरान पार्टी का प्रचार कर रही हैं।

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