मुरली चौधरी
तनकर खड़ा हो और खुलके मन की बातकर ।
हसरत साथ रखो, पर हर अगन की बातकर ।
मेहनत की कमाई से जुगाड़ों अपनी रोटियां ।
घर आये मेहमानों से जरा हँसकर बातकर ।
दूध से जला मट्ठा को भी फूँककर है पीता ।
बदलते दौर में अपनों से संभलकर बातकर ।
तमाशबीन है जमाने के हर खुदगर्ज लोग ।
छुपाकर रखो धन बुरे वक्त की उनसे बातक
गोरे काले में क्या फर्क है एक-सा है बदन ।
मुहब्बत भरे उसकी उस दिल की बातकर।
लोहे को लोहा काटता है कहता है ‘मुरली’ ।
लोहे के हथियार और उसकी जंग की बातकर ।