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दीपक कुमार दासगुप्ता

दीपक कुमार दासगुप्ता

पश्चिम बंगाल की दोबारा मुख्यमंत्री बनीं ममता बनर्जी की सफलता किसी भी मायने में कम नहीं है। किसी के भी सत्ता में आ जाने के बाद उसके खिलाफ विरोधी लहर जैसी ही बन जाती है। तिस पर तमाम आरोपों व कांडों के बावजूद जिन परिस्थितियों में चुनाव हुआ और ममता बनर्जी के वे सिपहसलार भी चुनाव जीतने में सफल रहे जिनके खिलाफ आरोप लगे थे, तो यह तृणमूल कांग्रेस की वन मैन आर्मी वाली मिथ को ही मजबूत करती है। क्या यही सच माना जाए कि राज्य के 294 विधानसभा क्षेत्रों में टीएमसी उम्मीदवार नहीं बल्कि खुद ममता बन र्जी ही चुनाव लड़ रही थी। जिनमें से 211 को सफलता मिल गई। इसे भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है कि कुछ सीटों पर टीएमसी की बहुत मामूली मतों के अंतर से हार हुई और कुछ सीधे – सीधे गुटबाजी के चलते। तो क्या टीएमसी की सफलता इससे भी ज्यादा हो सकती थी। मेरा मानना है कि सद्गुण , सदव्यवहार और सदविचार को अपना कर कोई भी असाधारण सफलता हासिल कर सकता है और यही ममता बनर्जी ने किया। पिछले एक साल के भीतर ममता बनर्जी के व्यक्तित्व में काफी बदलाव या यूं कहें कि परिवर्तन और परिपक्वता देखने को मिल रही है तो निश्चय ही इसका लाभ पूरे प्रांत के साथ देश को भी मिलना चाहिए। टीएमसी के साथ एक अच्छी बात और देखी जा रही है कि दूसरे दल जहां चुनाव नतीजे आने के बाद सत्ता सुख भोगने  में व्यस्त हो जाते हैं वहीं तृणमूल कांग्रेस कुछ सीटों पर मिली हार का भी पोस्टमार्टम करवा रही है ओर गलतियों से सबक लेने का संकल्प दोहरा रही है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि पश्चिम बंगाल की नई उड़ान की और अपने बंगाल को सोनार बांग्ला बनाने की।  ( मलिंचा, बालाजी मंदिर पल्ली, खड़गपुर)

 

 

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