रवि प्रताप सिंह
सारी जमीँ पर हर तरफ कविता की क्यारी है|
फ़लक के चाँद तारोँ पर हमारी दावेदारी है|
कलम से खौलता है खून सरहद पर जवानोँ का,
कलम के ही तरानोँ से वतन पर जाँ नि़सारी है|
कहीँ नागिन सी हैँ जुल्फेँ लरजती झील सी आँखे,
सरापा हुस्न की तस्वीर लफ्जोँ ने उतारी है |
कभी छुप जाती है कविता माँ की गोद मे जाकर,
कभी भँवरे का है गुंजन कली की बेकरारी है|
न साक़ी ही गजब ढाता न सागर मे नशा होता,
इन्हीँ शेरो सुखन मे कैद प्याले की खुमारी है|
427/सी¸ पातीपूकुर
पो.आ.-श्रीभूमि,कोलकाता-700048
मो.-8013546942