जगदीश यादव
श्मशान साधना कई तरहों से की जाती है। इस साधना का गूढ़ रहस्य तो वही साधक समझ सकता है जो इसकी जानकारी रखता हो या फिर उसने श्मशान साधना की होगी। बहरहाल आज आपको जो बताने जा रहा हूं वह भी कम रोमांचक नही है। ‘तेलिया मशान’ साधना से साधक किसी भी चीज की पूर्ति कभी भी कहीं भी पल भर में कर सकता है। मानना है कि इसके साधक के लिये कुछ भी असम्भव नही है। सबसे पहले तो यह बता देना जरुरी है कि इस लेखन को मात्र रोचकता के तहत ही लें। आज से लगभग साठ वर्ष पहले तब महानगर कोलकाता में भी ग्रामीण इलाकों की कमी नही थी। शहर से सटे तमाम इलाके शाम से पहले ही वीरान हो जाते थे। तमाम इलाके झाड़ी, जंगलों व हुगला के जंगलों से अटे थे। शाम हुई कि नहीं सियारों के बोलने की आवाज आम बात थी। दक्षिण चौबीस परगना के क्षेत्र झिंजिरिया में तब विस्तृत जगह में श्मशान भूमि थी। आज भी यहीं श्मशान है। लेकिन सिमटा हुआ। दोपहर के बाद भी लोग इसके आसपास से गुजरना नहीं चाहते थें। उपर से चोर उच्चकों का डर। लेकिन इस श्मशान भूमि में एक ऐसा भी इंसान था जो रात के बारह बजे के बाद भी डटा हुआ था। अमवस्या की काली अल्हड़ रात और श्मशान में कुत्तों व सियारों की आवाज रह रह कर कुछ इस तरह से गूंज रही थी कि दिल दहल जाये। लेकिन यहां युवा बेचू डटा हुआ था। श्मशान साधना में तो बड़े बड़े साधक थरथरा उठते हैं और पत्थर से पत्थर दिल भी दहल जाते हैं | लेकिन वह लगातार यहां डटा था। अगर बेचू को इस दौरान किसी पर सबसे ज्यादा गुस्सा आ रहा था तो वह भौंकते कुत्तों व चिल्लाते सियारों पर। कारण इनके कारण साधना में तकलीफ हो रही थी। ध्यान लगाने में नाकों चने चबाने वाली स्थिति थी। लेकिन बेचू ने पहले ही शराब की दो बोतल को उदरस्थ कर लिया था। वह ‘तेलिया मसान’ साधने में लगा था। बता देना चाहता हूँ कि ब्रह्म राक्षस की भांती ‘तेलिया मसान’ भी बहुत ही खतरनाक साधनाओं में से एक है जो पुरे श्मशान को जागृत कर देती है और साधक के लिए अपनी जान बचाकर भागना भी मुश्किल हो जाता है। साधना सिद्ध करने के लिए ‘तेली’ की खोपड़ी के बगैर नही हो सकती थी। श्मशान मे एक ‘तेली’ की कब्र थी। इस दिन रात्रि दो बजे कब्र में दफन के शरीर से खोपड़ी लेकर जाना ही था। श्मशान साधना चालीस दिनों से शुरु की गई थी। बेचू ने साधना की इस आखरी रात को ‘तेली’ के कब्र पर जैसे ही शराब व चने दिये, श्मशान भूमि एक भीषण आवाज से कांप उठी। आस पास के पेड़ों पर गहरी रात में आराम कर रहें परिन्दे भी इस आवाज के कारण जैसे सहम गये हों। नहीं चाहकर भी इन परिंदों में आधिकांश को अपने आशियाने को छोडकर उड़ना पड़ा। एक बारगी बेचू को लगा कि वह मल मूत्र उत्सर्जन कर देगा। लेकिन वह भयभीत नही हुआ। तभी जैसे कब्र से आवाज आई मुर्ख मै ‘तेली’ नही हूं, क्यों अपनी साधना को मुझपर बरबाद कर रहा है। मेरे पास की जो कब्र है वह ‘तेली’ की है, जा वहां जाकर अपनी मेहनत सफल कर। क्यों गलत मार्ग का अनुसरण कर रहा है। आवाज के गुम होते ही एक बारगी बेचू पत्थर में जैसे बदल गया। लेकिन वह हार क्यों मानता। उसने पास के कब्र पर अड्डा जमाया और फिर साधना में रत हो गया। फिर वही क्रिया को उसने दोहराया जो पहले वाले की कब्र पर दोहराया था। अचानक फिर वही जानी पहंचानी आवाज से श्मशान भूमि एक बार फिर कांप उठी। कतिथ ‘तेली’ के कब्र से आवाज आ रही थी। दिल को दहलाने वाली हंसी की आवाज। एक के बाद एक ठहाके । ठहाको के साथ कुत्ते व सियारों की आवाज श्मशान की भीषणता को हद तक डरावनी बना रही थी। पागल जैसी हालात में बेचू समझ नहीं पा रहा था कि क्या हो रहा है। वह अपने चारों ओर मंत्र द्वारा खिंची लकीर से बाहर भी नहीं जा सकता था। तभी आवाज थमी। फिर कब्र से आवाज आई मुर्ख बन गया रे तू मुर्ख बन गया। तेरी साधना भंग हो गई। मै सफल हो गया तेरी साधना को भंग करने में। बेवकूफ मै ही ‘तेली’ हूं जिसका सिर तुझे चाहिए था। लेकिन तू मेरे चकमे में आ गया। मेरे कहने पर तू जिस कब्र पर साधना कर रहा है वह ‘तेलिया मशान’ साधना के लिये उपयुक्त नही है। जा भाग तू छलावे में आ गया । जा चला जा। जाता है कि नही। बेचू समझ गया था कि वह ‘तेलिया मशान’ द्वारा छला गया है। उसे अपने बेवकूफी पर गुस्सा आ रहा था। लेकिन अब किया क्या जा सकता था। ‘तेलिया मशान’ साधना जो भंग हो गई थी।

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